बहुत दूर कहीं ऊॅचे पहाड़ पर एक बहुत डरावनी और शक्तिशाली डायन रहती थी। उसका घर एक गहरी गुफा में था। गुफा डतनी गहरी थी कि जब वह अपने बड़े से हंडे में जादुई घोल बनाती तो उसका धुंआ बाहर भी नहीं पहुंच पाता था। वह घर से केवल तब निकलती जब उसे अपने जादुई घोल बनाने की सामगरी इकठ्ठा करनी होती। एक दिन उसके खास गुलाब कम पड़ गए तो वह अपनी जादुई झाड़ू पर बैठ कर पहाड़ के नीचे बसे हुए राज्य तक गई। वह खूब लहराती हुई, खेतों से गुज़रती हुई, एक बहुत सुंदर झील पर पहुॅची। झील दूर से ही एक चमकते हुए रत्न के जेसे लग रही थी। डायन की ऑखें केवल उन जादुई नीले गुलाबों पर गईं जो झील के किनारे उग रहे थे। वह अपनी झाड़ू से उतर कर गुलाब इकठ्ठे करने लगी।

अचानक उसे कुछ चमकता हुआ नज़र आया। पास जाकर उसे मिला एक बहुत अदभुत व चम-चमाता हुआ सुनेहरा पंख।
उसने ऐसा पंख पहले कभी नहीं देखा था। सुनेहरे पंख की चमक बहुत तेज थी और वह आम चड़ियों के पंख से काफ़ी बड़ा भी था। डायन ने पंख उठा कर उसे परखा। उस एक पंख का जादू पूरे खेत के नीले गुलाबों से काफ़ी अधिक था। "मुझे इस पंख वाली चिड़िया को खोजना है" डायन बोली। उसी समय उसे झील के किनारे पड़े पत्थरों के पीछे कुछ हिलता हुआ दिखा। वह पत्थरों के पास दौड़ी। "पकड़ लिया", वह बोली। जब उसने अपनी मुठ्ठी खोली तो वह एक नारंगी रंग की छिपकली देख कर चौंक गई। छिपकली बहुत डरी हुई थी। "मुझे छोड़ दो" छिपकली बोली। "मैं आपको छोड़ दूॅगी, केवल मुझे बता दो कि सुनेहरी चिड़िया कहाँ है?"
"यहाँ कोई सुनेहरी चिड़िया नहीं है।" छीपकली बोली। इस जंगल में केवल सुनेहरा तोता रहता है। "तोता भी तो एक तरह की चड़िया होता है" डायन ने नाराज़ होकर बोला। "अगर तुमने मुझे सुनेहरा तोता नहीं दिखाया तो मैं तुमको हमेशा के लिए अपनी गुफ़ा में बंद कर दूंगी"। बेचारी छीपकली घबराती हुई डायन के साथ जंगल की ओर चलने लगी। घने जंगल में ऊँचे ऊँचे पेड़ हर तरफ़ दिख रहे थे। वहाँ सूरज की रौशनी का नाम और निशान न था। न कोई चड़िया ना ही कोई पशु उस जंगल में दिखने को था।
वहाँ हवा भी जेसे थम सी गई थी। वह बहुत ही डरावना व खाली सा जंगल था। डायन को भी डर लग रहा था। जंगल के अंधेरे में डायन को अपने दिल की धड़कन तेज सुनाई दे रही थी। "जल्दी करो" डायन छिपकली पर चिल्लाई। छिपकली पेड़ों के बीच से निकलती हुई जंगल के भीतर भाग गई। वह बहुत घबराई हुई थी। वह सोच रही थी कि अगर डायन को सुनेहरा तोता मिल गया तो वह अपनी जादुई शक्ति से उसका क्या हाल करेगी।

डायन छिपकली को अपनी जादुई छड़ी से मारती हुई जंगल के भीतर चलने लगी। छिपकली इधर-उधर देखने लगी और अचानक उसे पेड़ों के पीछे से चमकती हुई रोशनी नज़र आई। छिपकली को लगा कि वहाँ पर जादुई परियां थीं और वह उसे सुनेहरे तोते के बारे में बता सकतीं हैं। वह परियों की ओर बड़ने लगी कि अचानक से डायन बोली, "रुक जाओ"।
उसी समय वहां एक रोशनी की किरण नज़र आई। दोनो पास गए तो देखा कि वह रोशनी नहीं थी। वह सुनेहरे तोते की अदभुत चमक थी। तोता खूब ऊंचा व बड़ा था। वह शुद्ध सोने का था। उसकी चमकती हुई आँखे छिपकली और डायन की ओर देख रहीं थीं। वह निडर होकर बैठा हुआ था। डायन अपनी जादुई छड़ी उठा कर तोते की ओर भागी। उसने तोते पर ऐसी नज़र लगाई हुई थी कि भागते हुए उसने वहां पर उड़ती हुई परियों के झुंड को भी नहीं देखा। अचानक से परियों ने उसे उठा लिया और उसे वापिस झील के किनारे छोड़ दिया। डायन चौंक सी गई थी। "तुम इस जंगल से केवल नीले गुलाब ही ले सकती हो" परियां बोलीं।

डायन कांप रही थी। अंधेरे से निकल कर अचानक सूरज की रोशनी उसे परेशान कर रही थी। वह मुश्किल से उठी और उसने अपनी ऑंखें बंद कर लीं। वह बहुत डरी हुई थी। ऑखे खोल कर वह अपनी जादुई झाड़ू पर बैठ कर पहाड़ों से गुजरती हुई अपनी गुफ़ा पर पहुंची। उसने सोचा कि वह केवल नीले गुलाब पाने के लिये ही जंगल में जाएगी व और कुछ लाने के लिए उसे खतरा नहीं मोल लेना चाहिए।
वह अपनी गुफ़ा में आराम से बैठ कर जादुई घोल बनाती रही। कभी कभी रात को सपने में वह उस सुनेहरे पंख वाले तोते की चमकती हुई आँखे देखती और याद करती थी।
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